क्या कुछ टूट गया इक पल में
🍂
फिर नजरें हैं झुकी कि उसका फिर हम पर एहसान हुआ
दो पल ही के लिए भले मेरे घर वो मेहमान हुआ ना उसके ही दिल में ना मेरे ज़ेह्न को है कुछ याद
क्या कुछ टूट गया इक पल में क्या अपने दरम्यान हुआ
अब फ़ुर्सत के लाले हैं हरदम सांसत में जान रहे कैसे ज़ालिम वक्त में हमको मिलने का अरमान हुआ
हम भी तो अब मन के मारे बैठे हैं तब से तनहा
किए तसल्ली यह कि उसका जीनातो आसान हुआ
रिश्तोंके खिलवाड़ में आख़िर वो भी क्या शातिर निकला
और देखिए इसमें भी मैं ही कितना नादान हुआ
अब तो फ़क़त शिकायत की क़श्ती में बैठे अलग-अलग
दुःख की बड़ी कहानी का कितना छोटा उन्वान हुआ !
🍁🍁
(गंगेश गुंजन) 10 अप्रिल,2014 ई.
No comments:
Post a Comment