राजपथ पर साहित्य की सवारी सुभ्यस्त अति बौद्धिकों के तर्क में ही संभव हैे अन्यथा यह एक जुमलेबाज़ी भर है। * गंगेश गुंजन,५फ़रवरी,२०१८ ई.
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