ग़ज़ल-सी
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जिस पल से वो रूठ गया है
मन कैसा बेज़ार भया है।
यूं तो गया बरिस भर पहले
यह क्यूं लागे अभी गया है।
मैं कर दूं तो फ़रज हमारा
वो कर दे जो भयी दया है।
लो वसन्त के रिश्ते देखो
भाभी-देवर पिया-पिया है।
पतझर में मायूस शजर था
फूटी कोंपल अभी जिया है।
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-गंगेश गुंजन। १९ फ़रवरी,२०१८.
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