ग़ज़ल-सी
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अबकी दुनिया कैसी दुनिया
अलग-अलग एक-सी दुनिया।
लहू के छींटे भरा है दामन
यहां से वहां ख़ूनी दुनिया।
सुख - सुविधा के बनते पर्वत
एक तरफ़ अध नंगी दुनिया।
बच्चों की अंधियारी बस्ती
माँ-बहनों की जलती दुनिया।
अंतरिक्ष तक सफ़र संभाले
धरती भर कंगाली दुनिया।
उन होठों से मुस्काते हैं
इन अधरों से गाली दुनिया।
कितने सभ्य समाचारों की
कैसी जंगल वाली दुनिया।
बुद्धि और विज्ञान से उजली
वाह री ऐसी काली दुनिया।
जुड़ी - जुड़ी है युद्ध के लिए
शान्ति-कामना वाली दुनिया।
महाशक्ति से महाशक्ति के
समझौतों की साली दुनिया।
वहशी चाहत छद्म विचारों
की बनती रूपाली दुनिया।
आधा मधु और आधे विष की
घुली-मिली यह प्याली दुनिया।
पी लेने को देखो गुंजन
दौड़ पडी मतवाली दुनिया।
-गंगेश गुंजन.
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