Sunday, February 18, 2018

स्थानीय दैनिक में एक समाचार पढ़ कर

स्थानीय दैनिक में एक समाचार छपा है -
‘सकरी को हराकर जयनगर सेमीफाइनल में’।
यह पढ़ कर मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। सकरी का हारना। इस बात से मेरा खेल-स्वाभिमान आहत ‌है। सकरी हार कैसे सकता है?असंभव !
    विजयी जयनगर भी मेरे किसी ग़ैर राज्य या देश का नहीं है। सकरी और जयनगर दोनों ही मेरे आजू-बाजू हैं। दोनों तरफ लगभग समान दूरी पर। उत्तर का जयनगर एक‌ ही‌ ओर सिग्नल वाला रेल स्टेशन,जहां गए भी तो जाने कितने बरस बीत गए। उसी तरह सकरी गए हुए भी। फिर ? मेरी समझ में यह नहीं आता कि तब फिर सकरी का हारना मुझे क्यों बुरा लगा? याद आया है सकरी चीनी मिल प्रबंधन के‌ खेल का वह फ़ुटबॉल मैदान! इसमें देखे हुए कितने ही मैच।खेल। लेकिन आज तो मुझे यह भी नहीं मालूम कि वह फुटबाल फील्ड है भी‌ या किसी व्यावसायिक सोसायटी कालोनी की भेंट चढ़ चुका।फिर?       
    और तो कोई कारण नहीं। सिवाय इसके कि वहां दहौड़ा है। और दहौड़ा मेरे मित्रम् का गांव है। दीदी का सासुर भी। बचपन के बहुत‌ दिन और अवसर मित्र के साथ वहां की स्थानीय बाल आवारगी में अभिभावकों की डांट-पीट के बावजूद अच्छे गुज़रे हैं। कैसे भूल सकता हूं। लेकिन आज तो मित्रम् भी यहां नहीं रहता। कभी दिल्ली कभी काठमाण्डौ करता रहता है। अलबत्ता बड़े शौक़ से गांव में सभी सुविधाओं वाला नया सुन्दर घर बना रखा है। ताला लटका रहता है।बंद।
    दीदी भी कहां रहती हैं अब यहाँ।अपने बच्चों के साथ कभी रांची,कभी भागलपुर कभी मुंबई में रहती हैं। फिर इस सकरी से जहां दहौड़ा गांव है,अब मेरा क्या रिश्ता ?
सकरी की हार फिर से चुभी-
...कितने गोल से हारा होगा ? मैंने तसल्ली की कि ज्यादा से ज़्यादा जयनगर एक गोल से जीता होगा।इससे अधिक नहीं। फिर खीझ है- सकरी हारे या जीते ! इससे मुझे ? खीझा तो लेकिन चाहकर भी रोक नहीं पाया। बचा हुआ समाचार जो पढ़ने लगा तो पाता हूँ कि मैच विकेट और रन का यानी क्रिकेट का था !
-'वही तो ! फुटबाल में सकरी कैसे हार सकता है भला?
और क्रिकेट को कौन पूछता है।असली तो खेल 'फुटबाल’ है। उसमें सकरी नहीं न हारा है। मैंने ख़ुशी की लंबी सांस भरी है।
     इस अहसास के साथ ‌ही अब ‌मैं अपना अभिमान सुरक्षित महसूस कर रहा हूँ।         
*
 -गंगेश गुंजन।१८.२.’१८.

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