दिल्ली में 'मुफ़्त मेट्रो' प्रकरण विवाद !
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मैं क्या कहता हूं यदि यह राजनीतिक पार्टियां और राजनेता नहीं चाहते तो दिल्ली की प्रबुद्ध जनता खुद ही यह निर्णय नहीं कर सकती है कि हम मुफ़्त में मेट्रो रेल पर नहीं चढ़ेंगे। मैं तो श्रीधरन जी के सिद्धांत और प्रस्ताव से शत-प्रतिशत सहमत हूं।
अभाव बहुत हैं। यहाँ स्थानीय यातायात में बहुत समस्या है।लेकिन जनता मेट्रो-सेवा दान नहीं लेगी।भावी समय के पक्ष में देश की राजधानी दिल्ली का नागरिक होने के नाते भी हमें अपनी विशेष चेतना का साहस नहीं दिखाना चाहिए क्या ? जनता ही वर्तमान और भविष्य की राजनीति तय करती है।तो क्या इतने वर्षों में देश की राजधानी दिल्ली भी दूर देहात गांवों की तरह अविकसित,भ्रमित और चेतना के स्तर पर पिछड़ी हुई ही रह गई ?
और क्षमा करें यहां की घनेरों सामाजिक संस्थाएं, एनजीओ, राजनीति से बाहर की समाज सेवी संस्थाएं,लोग, इस बारे में अपेक्षित जन चेतना लाने का काम नहीं कर सकते हैं?संस्थाओं और बुद्धिजीवियों का भी यह कर्तव्य नहीं कि इसके बारे में राजनीतिक स्वार्थ से मुक्त होकर जनचेतना फैलाने में अपना यह फौरी कर्तव्य निभायें।
सत्ता और शासन की भाषा कैसी लुभावनी होती है,उसमें कैसी माया होती है उसे आप इतने दिनों से देख रहे हैं,भुगत रहे हैं।यह सत्ता और सरकार जब आपको ज़रा एक सुविधा भी दे देती है तो उस पर हम-आप मुग्ध हो जाते हैं। और आपकी इसी मुग्धावस्था का फ़ायदा उठाते हुए सरकारें बहुत कुशलता और चतुराई के साथ आप पर परोक्ष रूप से चार असुविधाएं दे डालती हैं- कराघात के रूप में।जिसे आप कितने वर्षों तक भुगतते रहते हैं।हम जनसाधारण को बरसों बरस इसकापता भी नहीं चल पाता।
तो आप ख़ुद के लिए नहीं तो आने वाली आपकी संतान के लिए,राजनीति की पवित्रता बहाल करने के हित में एक बार जनता को भी देश हित में या यह साहस दिखाना चाहिए। हमें दान बिल्कुल नहीं। आमदनी की ईमानदार मुकम्मल व्यवस्था चाहिए। यातायात सुविधा भी चाहिए अवश्य किंतु किसी चालाक राजनैतिक रास्ते से नहीं,आज की समझ और नये आर्थिक प्रबन्धन के तहत, बिल्कुल पारदर्शी,नागरिक अधिकारिता और संवैधानिक तर्कों केसाथ। लेकिन हम-आप भी सोचें, आपको दान चाहिए या सम्मान चाहिए ?
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यह कोई राजनीतिक बयान नहीं, मेरा,एक जनसाधारण,एक नागरिक का,अपने ही लोगों से आग्रह-अनुरोध है !
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गंगेश गुंजन।२३ जून,'१९.
Sunday, June 23, 2019
दिल्ली में मुफ़्त मेट्रो विवाद
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