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राह पर-चलते-चलते-चलते
ही जाना
यह ज़रूरी नहीं ऐसे मंजिल
भी पाना
एक थैला हो,कलम-कागज
पानी बोतल
भुने चने भी थोड़े साथ हों
मंजिल के लिए।
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गंगेश गुंजन
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