🌻🌻 🌿 बालिग़ होकर प्रेम सद्गृहस्थ हो जाता है।कहीं का नहीं रहता है।गृहस्थी में ही प्रेम की यह परिणति होती है। 🌿 🌻🌻 गंगेश गुंजन
No comments:
Post a Comment