Thursday, May 30, 2019

लोकशक्ति का महासमर: ग़ज़ल

                 🌈

बस  यादों  का ही मंज़र
होकर रहा ये अपना घर

उनको कहां ज़रा फ़ुर्सत
हर लम्हा पहाड़ हम पर

आसमान में  तनहा वह
एक   परिंदा    मारे पर

भूले से उनके  भी कदम
कभी भटक जाते जो इधर

अब मुश्किल ही लगता है
जी कर  पड़े  निभाना गर

वे  अमीर  मातवर  मस्त
दीनों  का   जीना   दूभर

क्यों सबकुछ बेज़ार लगे
दो पल दम ले,सोच ठहर

कुछ उनके  बारे में सोच
कुछ  इनके बारे  में  कर

भाषा-शब्द  चुने  तुमने
लोगोंके हित जी औ’ मर

बचा  हुआ  है  एक अभी
लोक-शक्ति का महासमर !
       
        🌾🌾🌾🌾🌾

गंगेश गुंजन, 30 जून, 2011 ई.

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