Tuesday, May 14, 2019

विपक्ष लेखक का प्रारब्ध

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विपक्ष समाज का एक जीवन-मूल्य है,कोई इच्छित परिस्थिति नहीं।अतः नियति।
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विपक्ष की नियति ही विपक्ष है। जिन्हें अपने विपक्ष होने का अभिमान है उनकी आयु सत्ता परिवर्तन तक की है। इसलिए अन्य कई झोलदार लोकतान्त्रिक विशेषणों की तरह विपक्ष भी प्राय: जुमला भर बच गया लगता है। मुक्तिबोध का ‘पार्टनर तुम्हारी पालिटिक्स क्या ‌है’ का यह समय नहीं बचा है।ज्योंही लोकतंत्र में आप किसी राजनीति विशेष दल के पक्ष में किसी सत्तासीन दल का विपक्ष कर रहे हैं तो उस मौजूदा सत्ता शासन का अंत और आपके पक्ष का सत्ता ग्रहण के साथ ही आपका ‘विपक्ष’ भी सत्तासीन पक्ष में तिरोहित भर होता है,जैसे महानगर का कोई नाला किसी महानद में।उदात्त रूपक में लें तो जैसे,नदी समुद्र में !
    विपक्ष अभी तक एक मात्र कविता है और विचार। कवि भी लेकिन,समष्टिक नहीं। विचार कभी भी,किसी एक विचारधारा का दूसरी विचारधारा में विलयन कराने ले जाने भर के लिए पालकी नहीं ढोता है। विचार राजनीतिक दलों की पालकी का कहार नहीं बन सकता। चरित्र मुक्त बौद्धिक बयानों में शोला कभी शबनम दिखना नाटक के एक दृश्य-प्रदर्शन भर की तरह है। लोकतंत्र की यह भी सुन्दरता है। 
कविता ही विपक्ष है।                    🌈🌾                                              -गंगेश गुंजन।२८.४.’१९.

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