Friday, August 31, 2018

देश फिर से दास ना हो यह अंदेशा है

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देश फिर से दास ना हो  ये अंदेशा है।
देखकर के सियासत का रंग जैसा है।

वे बहुत मशरूफ़ संसद संविधानों में।
क्या पता उनको सभी जा डर कैसा है?
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-गंगेश गुंजन
रचना: २०१३ ई.

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