Monday, August 27, 2018

इस लोकतंत्र को अब 'विदेह' प्रधानमंत्री चाहिए

सत्ता की राजनीतिक व्यवस्थाओं में लोकतंत्र अनुपातत: अच्छा है परंतु अलोकप्रियता के जोखिम भरे हुए तत्त्व सबसे अधिक इसी लोकतंत्रीय सांचे-ढांचे में ही हैं। स्वतंत्रता के बाद अधिकतर फेल प्रधान मंत्रियों के इतने लंबे अनुभव की रोशनी में कभी-कभी तो मुझे लगता है कि अब कोई  'विदेह चेतन’ प्रधान चाहिए। 'देह चेतन' नहीं। लोकतन्त्र में राजा तो नहीं,प्रधान मंत्री। कर्तव्या ऐसे लोकतंत्र में राजा का ही संवैधानिक अनुवाद-पद प्रधान मंत्री भी माना ही जा सकता है।और सो बनाता है विश्व बाज़ार ! प्रत्यक्ष या परोक्ष ऐसे या वैसे। इस विचार से या उस विचार से। सो देह-चेतना वाले किन्हीं भी औसत महान् इन्सान प्रधान मंत्री से तो ये जोखिम उठाकर सत्ता प्रमुख बने रहना असंभव सिद्ध हो चुका है। अब सत्तर साल से अधिक का यह बुढ़ाया लोकतंत्र पराजित भले नहीं किंतु थकी हुई आवाज़ में कह तो रहा ही है। सुनना चाहिए।
   इसीलिए अब कोई  ‘विदेह चेतन’ मानवीय नेतृत्व दरकार है!
   कोई आश्चर्य नहीं कि आने वाले युग में संसार को गणतंत्र का उपहार देने वाले (बिहार) मिथिला
के ‘विदेह’ फिर लोकतंत्र की अगुआई करने आयें।
इसे आप मेरा मिथकीय विश्वास भर मत मानिए।

गंगेश गुंजन।
२७ अगस्त,२०१८ई.

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