Tuesday, August 7, 2018

कमल

कमल !
*
जबसे कमल राजनीतिक दल का प्रतीक चिह्न हो गया है तब से बहुत सारे कवियों की प्रगतिवादी मुश्किलें बढ़ गई हैं। कवि-कर्म बेतरह प्रभावित हुआ है।

    साहित्य-सांस्कृतिक कारणों से भारत में कमल आज भी ज़्यादातार कवियों का वैसा ही प्रिय फूल है। मैथिली के तो अधिकतर कवियों की कलम इसी के कारण लुढ़की पड़ी है। वजह भी है। बिना कमल के उनमें कविता का स्फुरण ही कुंठित हो गया है। ऊपर से देश में विविध राजनीतिक वैचारिक रुझान और प्रदर्शनीय प्रतिबद्धता पर संकट है।   

      ज्ञात हुआ है कि इसी डर से कुछ कवि अपनी पुरानी कवितायें जिनमें “कमल” का प्रयोग है उसे प्रकाशित ही नहीं कर रहे। अपनी-अपनी ‘कमल-कविता’ओं को दबा कर बैठे हैं।
कविता में तो मानो कमल का ‘देख दिनन को फेर’-काल चल रहा है।
🌷
     -गंगेश गुंजन, 10 जुलाई 2018.

No comments:

Post a Comment