Thursday, August 30, 2018

सीबीआई !

कभी-कभी लगता है कि देश में कुछ संस्थाएं जैसे सीबीआई अगर नहीं बनी होती तो इस देश में लोकतंत्र के प्रतिपक्ष का भविष्य सदा-सर्वदा अंधेरे में ही डूबा रहता। खास तौर से सत्ताच्युत दलों की संजीवनी ही है यह सीबीआई।अब आप देखिए कि जो भी विपक्ष में होता है,उसके लिए सीबीआई,सरकार को घेरने का एक औज़ार-झुनझुना बनकर हाथ लग जाता है। सीबीआई सरकारी झुनझुना है,सुग्गा है,मैना है या पालतू कोई जानवर ! यह तो समय पर निर्भर रहता है परंतु साधारणतया राजनीतिक दलों की जो वैचारिकताएं हैं और उनके दलीय आग्रह-दुराग्रह हैं उसमें,CBI तत्कालीन सरकार की है तब भी देश की सभी मुद्दा विहीन राजनीतिकों का प्राण है और जब प्रतिपक्ष ही सरकार होकर देश के सिंहासन पर बैठे तो वैसे अवसरों पर उसका अधिकृत प्राण है। मगर है दिलचस्प। कम से कम सभी पार्टियों के लिए सीबीआई सरकारी चाबुक या शासकीय नकेल का सदा तैयार मुद्दा तो है। यही तो वह छायादार हरा महावृक्ष है जिसके नीचे राजनीतिक पार्टियां अपनी-अपनी सुविधा के अनुसार बैठ कर,जी भर सुस्ता कर नई ताकत और ऊर्जा प्राप्त करती हैं।अपने-अपने सत्ताच्युत दुष्काल की गर्म तप्त दोपहरी गुज़ारती हैं।इसी की छाया में विश्राम करके अगले आम चुनाव की अपनी राह पकड़ लेती हैं ।
  बाकी सीबीआई की वास्तविकता तो‌ यह है कि किसी भी भारी घोटाले पर जब निष्पक्ष जांच की जरूरत होती है तो तमाम विपक्ष भी प्रामाणिक जांच और अपेक्षित दण्ड के लिए सीबीआई से ही जांच कराने के मोर्चे लेता है। यह फंडा आज तक मेरी समझ में नहीं आया।
    लगता है कि, हमारे लोकतंत्र‌ में बहुतों से बहुत ऊपर है -सीबीआई ! यह बड़ी हैसियत है।
-गंगेश गुंजन।

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