Tuesday, September 4, 2018

यह भी एक ग़लतफ़हमी !

यह भी एक गलतफहमी है कि साहित्यकार या कवि, तुच्छ राजनीति के...

यह भी एक गलतफहमी है कि साहित्यकार या कवि कभी, तुच्छ राजनीति के विवादी हथकंडे नहीं अपनाते। मौक़ा आते ही, दूध दायी समितियों में आने,सम्मान- पुरस्कारों के लिए, रत्न विभूषण के लिए कितने ही ऐसे द्वितीय-तृतीय श्रेणी के प्रसिद्ध हो गये,अलग-अलग शिल्प-शैली में बहुत कलात्मक और शालीन तरीके से अपना मनोवांछित कहना चाहते हैं, कह देते है या कह देती हैं। हालांकि उसे या उन्हें भी मालूम है कि भाषा से बड़ी चुग़लख़ोर तो त्रेता की मंथरा भी शायद ही रही होगी ! प्रतापी श्रीरामचन्द्र का वनवास करवा डाला। सोचिये  तो !
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-गंगेश गुंजन।

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