भूले से विश्वास न कर
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मौसम वापस लौटेगा
भूले से विश्वास न कर
कोई वचन निभाएगा
ऐसी कोई आस न कर
जीवन रख आम ही दोस्त
इसको इतना ख़ास न कर
एकान्तों में घर न बना
गांँव से दूर निवास न कर
मरना ही है गर तुझको
यूँ लावारिस लाश न कर
बहुत पुराना है सब कुछ
फेंट-फाँट के ताश न कर
भटके हुए डरे हैं लोग
सोच के मन हताश न कर
वोट पर्व के वादों का
भूले से विश्वास न कर
बकबक करने दे उसको
तू तो यूं बकवास ना कर
आया नहीं पत्र उसका
जी अपना उदास ना कर
टूट न जाने दे सपना
दिलकी ख़त्म प्यास न कर
एक सफ़र फिर जो बेकार
हो,मन को वनवास न कर।
-गंगेश गुंजन।17 जून 20011
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