Saturday, June 9, 2018

समुद्र का डर

समुद्र का भय  : दो

पृथ्वी पर जगह जगह बहुत उथल-पुथल मची हुई थी। बहुत सारे ऐसे समाचार मिल रहे थे जिनमें राजा और प्रजा के मतभेदों की कहानी बन रही थी। सिंहासन और सत्ता पलटने और बदलने की घटनाएं हो रही थीं।
    प्रजा के विद्रोह का डरावना वातावरण बन रहा था। इन्हीं परिस्थितियों में समुद्र के कानों  तक भी छिट फुट कुछ नदियों के सूखने के भी समाचार पहुंचे। सो समुद्र को भी गहरी चिंता हुई। नदी सूख रही हैं या मुझसे रूठ रही है? या नाराज़ हो रही हैं ? तो ऐसे में उसे चिंता हुई कि  यदि धरती पर की सारी नदियां मिलकर एक हो जाएं और उनकी एकता भी अटूट हो जाए ? सब मिल कर मुझसे विद्रोह कर दें ? और वे मुझसे मिलना ही बंद कर दें तब ? मेरा क्या होगा तब? ऐसे में मैं समुद्र रह भी पाऊंगा क्या भला? यह सोचते ही,समुद्र होते हुए भी वह अचानक बहुत डर गया।और गहरी चिंता में पड़ गया। फिर इस पर सोचने लगा- अवश्य ही इसका कोई कारण भी होगा। सोचते हुए उसके मन में पहला ही विचार यह आया कि अपनी नदियों के बारे में मैं बड़ा लापरवाह हो गया हूं। उन पर ध्यान नहीं देता हूं। उनके दु:ख-तकलीफ नहीं समझता हूं। यानी उनका कुशल क्षेम भी नहीं जानता रहता हूं।किसी से कोई शायद इसीलिए तो कोई रूठता है। इसलिए मुझे नदियों के लिए अपनी चिन्ता बढ़ानी चाहिए। उनको मनाने के लिए,उनके प्रेम को जीतना होगा। उपाय सोचता समुद्र रात भर सो नहीं सका। तब इसी उधेड़ बुन में उसे नये सिरे से इसका भी ध्यान हुआ कि इधर बहुत दिनों से वह किसी भी नदी के बारे में कुछ भी चिंता नहीं कर रहा था। उनके बारे में कोई खोज-ख़बर नहीं रख रहा है।और अंत में उसने अपने मन से ही समझा और माना कि असल में वह बहुत घमंडी हो गया है। वह देर तक पछताता रहा।    
    कहते हैं कि तब समुद्र एक अच्छे अभिभावक की तरह नदियों की नियमित खोज खबर रखने लगा।और तब ऐसे समाचार आने लगे कि नदियां भी कम सूखने लगीं। पहले तो कोई एक नदी सहमी -सहमी समुद्र के पास आयी। फिर कुछ और नदियां भरोसे से भर कर समुद्र में मिलीं।धीरे-धीरे समुद्र के लिए नदियों में भरोसा और प्यार भरने लगा। और तब  मिलने के लिए नदियां जल्दी जल्दी समुद्र तक आने लगीं !

इस तरह समुद्र बच गया जो आज तक है।
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-गंगेश गुंजन 17 अप्रैल 2018.


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