Wednesday, June 20, 2018

। विचार और पत्रकार।

। विचार और पत्रकार।
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हिंदू कट्टरता या मुस्लिम कट्टरता बराबर हो यह निश्चित नहीं है,संभव है। देशकाल और जीवन की परिस्थितियां रोजमर्रा की जद्दोजहद और तमाम सामने की परिस्थितियां जिनमें आदमी की सामाजिक चेतना और मनुष्य के भविष्य के सपने भी निहित हैं इन दायरों में सोचने और समझने पर,विश्लेषण करने पर 2019 के आम चुनाव के बारे में पत्रकारों का आकलन उनका स्वाभाविक हो सकता है लेकिन यथार्थ भी यही,यह मानना मेरी दृष्टि से असमाज वैज्ञानिक है। जहां तक धार्मिक कट्टरता और रूढ़ियों की बात है ये तमाम अपनी परिस्थितियों के दबाव में ही बनती और बदलती भी हैं। जीवन की ही तरह यह भी अस्थाई हैं। महज़ जाति और संप्रदाय के आधार पर परस्पर अनुपातिक परिवर्तन को,सही आनुपातिकता को आंकना दुरुस्त बात नहीं है।

  विचारधारा से भरे सामाजिक यथार्थ परिचित कराने के तमाम औज़ार-उपक्रम भोंथड़े हो गए हैं। मेरे अनुभव से कुछेक विचारधाराएं स्वस्थ सुंदर होकर भी, मुग्धावस्था में पड़ी हुई हैं। उनकी रूहें दिमाग में समा गई हैं और दिमाग़ से ही समाज और जीवन को देख रही हैं। बेनूर नज़र से और बेअसर विचार की वर्तनी और व्याकरण पर नपा-तुला कदम उठाया जा रहा है जो अब सिर्फ जनसाधारण को बरगलाने के काम आ रहा है ।
आवश्यक परिवर्तनकामी राह पर ले जाने वाला नहीं।     
      साहित्यकार में भी कमोबेश राजनीति कारों की तरह यही प्रवृत्ति संगठित रूप से सक्रिय है। वास्तविक और अपरिहार्य सामाजिक सच्चाइयों को देखने वाली उनकी दृष्टि शायद ही नि:स्वार्थ निरपेक्ष बची है। नहीं बची है अब।
   यह मेरा राजनीतिक विश्लेषण नहीं,पत्रकारिता वाला भी नहीं है,किसी एक लेखक जनसाधारण का सामाजिक विश्लेषण भर है।
      गंगेश गुंजन 20 जून 2018.

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