। कहक्कर-पढ़क्कर हस्तियां,सामान्य जन और यह
Facebook. विचार।
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यों तो विचारों और वक्तव्यों का यहां सैलाब उमड़ा रहता है लेकिन इन सब में इतनी भांतियों के यथार्थ और इतने विरोधाभास, इतनी इतनी दूरियां, इतनी-इतनी नीयतें और दृष्टिकोण होते हैं कि आख़ीर में सामान्य जन के दिमाग में सब गड्ड-मड्ड हो जाते हैं। एक दूसरे में यूं घुल जाते हैं कि किसी एक ही की कोई शक्ल,स्वरूप या रखे गए विचार की बुनियादी आकृति खोजें तो शायद ही मिलती है। सब मानो घालमेल हो जाता है। किसी के भी कथन का कोई अपना मूल व्यक्तित्व स्पष्ट बचा नहीं रह जाता है।
भला इस लिखने-पढ़ने और बोलने से क्या फ़ायदा जो आपकी अपनी भी बुद्धि और विवेक का भी हरण करके बैठ जाय ?
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गंगेश गुंजन 20 जून 2018
Friday, July 6, 2018
। कहक्कर-पढ़क्कर हस्तियां,सामान्य जन और यह Facebook. विचार।
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