(३.)
रात और दिन और ऊषा : एक प्रेम त्रिकोण
एक तीसरी कहानी भी।
लेकिन एक कथा यह भी है कि अंधकार और प्रकाश दोनों बहुत गहरे मित्र थे। दोस्त। और जैसा कि होता है बचपन से साथ रहते-रहते युवा हुए। तो युवाओं के मन में जो बातें आती हैं भावनाएं होती हैं,उनके भीतर जैसे संवेग और संवेदनाओं का विकास होता है तो उसके हिसाब से स्वाभाविक रूप से दोनों में भी हुआ। दोनों के दिन बहुत आराम और आनंद से बीत रहे थे। कि तभी एक समस्या हुई। इन दोनों के बीच में एक प्रेममयी सुंदरी का प्रवेश हुआ। दोनों ही उस पर प्राण देने लगे। उधर वह सुंदरी भी दोनों को प्रेम करने लगी।अपने लिए दोनों की आकुलता देख कर अच्छा-अच्छा महसूस करने लगी। लेकिन सुंदरी को एक समस्या थी। सुंदरी दोनों को एक ही समान प्रेम जो करने लगी थी।
दोनों में से किसी एक को चुनना उसके लिए बहुत बड़ी मुश्किल थी। वह दोनों को ही इतना चाहती थी कि किसी को निराश और दुखी नहीं कर सकती थी।
इसको लेकर तीनों के बीच बहुत तनाव चल रहा था बहुत दिनों तक कोई समाधान ही ना मिले। दिनों तक तनाव और झगड़े की स्थिति बनी रहती। अतः दोनों मित्र अलग-अलग बेचैन असंतुष्ट दुखी बने रहते। यह समझ ही नहीं पाते कि क्या रास्ता निकालना चाहिए ?
इसी दु:ख और उधेड़बुन में दोनों को एक दूसरे पर सहानुभूति भी हो आती। जैसे मैं उसके बिना नहीं रह सकता हूं वैसे ही वह भी तो उसके बिना नहीं रह पाएगा। दोनों दोनों की तरफ से सोचने लगते हैं। फिर दोनों ने आपस में मिलकर भी बहुत सोच-विचार किया। इस प्रकार वे जब सुंदरी के बारे में सोचते तो उन्हें महसूस होता है कि हम दोनों से अधिक मुश्किल तो सुंदरी की है जिसके लिए दोनों एक दूसरे से तने हुए हैं।
तब एक समय दोनों दोस्त बैठते हैं। मिलते हैं।तय करते हैं। बहुत विचार विमर्श के बाद यह निश्चय होता है कि
-’ठीक है,रात भर सुंदरी,रात के पास ही रहेगी और जब सुबह होने लगेगी तो रात, ऊषाकाल को दिन के साथ कर देगी। इस तरह से दिनभर ऊषा उसी के साथ रहेगी।
तभी से दोनों मित्र परस्पर अपना यह आदर्श वायदा निभा रहे हैं। सूरज शाम को ढल कर रात बन जाता है और सुबह जब निकलने लगता है तो उषा के साथ उगने लगता है।
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-गंगेश गुंजन 9 सितंबर 2017 ईसवी
Sunday, May 6, 2018
रात और दिन और ऊषा
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