काले अक्षरों के लाल अख़बार।
🌸
लाल रंग भटरंग* हो गया लगता है
कुंद हो गयी है हंसिया की धार
ख़ुद अपने ही अपनों के कपाल
फोड़ता हुआ लगे हथौड़ा !
जबकि अब भी जैसी ही,
खेती-बाड़ी है,
पक रहे ही हैं फसलों के खेत।
झूमते ही हैं मौसमी बयार मे
गेहूं के सुनहले शीश !
किसानों का आत्मदहन है लगातार।
छप ही रहे हैं -
काले अक्षरों में लाल अख़बार !
🍁
*वह एक रंग जो कहीं फीका कहीं गाढ़ा अतः सहज न दिखे, मैथिली में उसे भटरंग* कहते हैं।
-गंगेश गुंजन 30 अप्रैल 2018.
No comments:
Post a Comment