Friday, December 1, 2017

रूह में उतर कर देखा जो

रूह में उतर कर उतर कर जो 
*
मैंने उसके चेहरे पर देखा
पूरा का पूरा आकर्षक विज्ञापन  था   
कुछ रंगीन परेशानियां थीं,कुछ तीखे सवाल
सब के सब उलझी हुई रस्सी की तरह गड्ड-मड्ड,
और पढ़ना मुश्किल था उसके मन को।
मैंने एक मामूली-सा सवाल किया।
वह चुप रह गया कुछ बोला नहीं
लेकिन उसकी अवस्था मुझे लगी कि
जितना बाहर है वह बिल्कुल भी नहीं है
इससे इतर है, यह जो है
मैंने उसकी रूह में झांका।
मैं उसकी रूह में उतरने की कोशिश करने लगा और देखा-वहां कितना सुंदर इतना प्यारा
इतना मुलायम एक इंसान है जो वहां भी यानी
अपनी रूह में तन्हा है। लेकिन उसके हाथ में पुरानी खुशबू की कलम है।
नाक पर टिका चश्मा है। वयस्क आंखों में बचे हुए सपने हैं। और उसमें
गुन गुनाता हुआ गाना है। वहां, उसकी रूह में एक पूरा का पूरा अलग ही संसार है।
बिल्कुल अलग और उसमें जिधर देखो उधर बच्चे खिलौनों से खेल रहे हैं।
नवयुवक बेइख्त़ियार हैं। दोस्त प्रेम के चर्चे कर रहे हैं।
वयस्क परस्पर पुराने दिनों को स्वाद ले लेकर याद कर रहे हैं और यह सब  उसकी रूह में कभी चित्र, कभी कविता, कभी गीत और कभी समूह गान के रूप में चल रहा होता है।
अजीब-सा तिलिस्म रखा है।
मरने-मार डालने तक की गर्म बहस,नंगे शमशीर की तरह  खाली हाथ !
इसके चेहरे और इसके रूप में कितना बड़ा कितना बड़ा फासला है।
मैं उसकी रूह से पूछता हूँ -’कैसे संभालते हो तुम ?’
वह मुस्कुराता है जैसे, कोई अच्छा बहुत अच्छा या सबसे अच्छा इंसान मुस्कुराता है और
और जिसकी पूजा अर्चना करता है वह उसके कदमों में ईश्वर की तरह उसकी आज्ञा का
इंतजार करता है उसका टहल बजाने के लिए। वह यूँ निश्चिंत है जैसे,
दुनिया की सबसे अच्छी मां उसे अपनी गोद में लेकर सबसे अच्छी संतान की तरह          
सृष्टि की सबसे दिव्य लोरी गा कर सुना रही है और वह नंद नंदन ! नन्ही- नन्ही पलकों में
निंदिया रहे पूरी दुनिया पर मुस्कुरा रहा है।
और अपनी रूह दिखा रहा है, जैसे -
अर्जुन को दिखाया था,अपना विराट विश्वरूप !
चेहरे से अलग उसकी रूह तो पूरा का पूरा
एक ब्रह्मांड है
परम शांत ज्ञानवान है ।
यह कैसा इनसान  है !
*
-गंगेश गुंजन। 27 March, 2016.


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