Saturday, December 16, 2017

संन्यास-समाचार

आज सुबह-सुबह बहुत पुराने दो मित्र आए। ज़ाहिर है बहुत खुशी होती है।अब तो आजकल कोई किसी को पूछता नहीं। आज सुबह-सुबह बहुत पुराने दो मित्रों का आना! बहुत खुशी होती है कोई स्नेही आ जाएं तो। इस मौसम में,सो भी सुबह-सुबह पधारे तो क्या कहना ! आनन्द आ गया।

   प्राथमिक शिष्टाचार हुआ। श्रीमती जी ने भी हुलस कर उनके लिए चाय बनाई। चाय पीते हुए  वार्ता चल पड़ी।

एक मित्र ने बड़े उद्गार में बड़ी भक्ति राष्ट्रभक्ति के भाव में कहा- अपना देश भी अद्भुत अनुपम है ! जो विदेशी भी यहां आ जाता है तो इसी देश का हो जाता है।यहीं कि भावना के वशीभूत हो जाता है ।’

-’जैसे ? कोई नया नया कुछ हुआ क्या ?’दूसरे मित्र ने टोका।

-’जैसे कि हमारी आदरणीया सोनिया गांधी जी।' दूसरे मित्र भाव विभोर स्वर में बोले। फिर देश की परंपरा के सम्मान के भाव में बहते हुए ही भावुक-भावुक कहते रहे- मुझे तो लगता है कि कहीं ना कहीं अपने देश में आज भी संन्यास की परंपरा जीवित है।बहुत पहले जो एक उम्र में आकर आदमी संन्यास आश्रम में जाते थे। आज भी होता है!’

-’जैसे ? ऐसा आपको किस आधार पर लगता है?’

दूसरे मित्र ने टोका।

-’देखिए ना,पुत्र राहुल जी को अध्यक्ष पद सौंप कर, सोनिया गांधी जी ने रिटायर होने की घोषणा कर दी। रिटायरमेंट ही तो संन्यास है न?इस बात पर तो मैं उनका और मुरीद हो गया!’

-’हां,हां ! सोनिया जी रायबरेली से चुनाव लड़ने वाली हैं। आज मैंने भी अखबार में पढ़ा है !’

मेरे दूसरे मित्र ने छूटते ही कहा और कुटिल विनोद से मुस्करा कर मेरी ओर देखा।

‌   अब यह ज्वलंत वार्तालाप मेरे दो मित्रों का है।मुझे लगाकि आप तक भी पहुंचे,सो प्रस्तुत है।परंतु निवेदन है कि मात्र इस आभास पर‌ कि आपको ये एक कांग्रेस भक्त और दूसरे भाजपा के लगें इसीलिए यह राजनीतिक चर्चा है,ऐसा न मान बैठें।कृपया,

शुभ प्रभात !

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