कहिनी
*
हम नहि कोनो बकवास केलौं
लीखि कहि जैबाक प्रयास केलौं
देब माफ़ी हमर समयक लोक
किछो कहि क’ जँ उदास केलौं
हम्हूंँ लोके जकाँ कै बेर कतेक
अबल,दु:खी मन निराश केलौं
कोनो राजाक शरण नहि गेलौं
लोक संगहिक अभ्यास केलौं
मोन पूछैये आब कखनो काल
अहाँ कविता मे की खास केलौं
स’भ प्रतिकूल समय मे संभव
कैल प्रतिरोध नहि हताश केलौं
जदपि जे कहलक मन से कैलहुंँ
ओना अनकहलो बड़ रास केलौं
स’ब सँ कहबा मे छूटि गेलनि
से विषय हम ही टा,खास केलौं
हँ मुदा बेर पर कए बेर एहन
भेल संभव नहि अहाँक बात केलौं
एक बेर सब टा विफल मन कें
कहि दीतहुंँ अहूंँ जे माफ़ केलौं
गुंजनक एखन तं एतबे किताब
जीवि-मरि कवितेक विश्वास केलौं
रचना : ५.११.२०११ / गंगेश गुंजन
No comments:
Post a Comment