🌺 कोरोना बुलेटिन 🌺
२७मार्च,२०२०.
आज विश्व रंगमंच दिवस पर विशेष भेंट-दो पात्रीय संवाद-नाट्य:
दृश्य:एक मात्र।
[चारों ओर से बंद ड्राइंग रूम में बैठे आमने सामने दो लोग-बेचैन बुज़ुर्ग और बेफ़िक्र युवक।दादा-पोता ]
*
दादा : (बहुत व्याकुलता से खीझ और गुस्से से) :
पता नहीं यह अभागा कब जायेगा यहां से।
पोता : जिस्म का फोड़ा नहीं ना है दादू कि एक-दो
बारी मरहम लगा देने से चला जाये।आप क्यों
परेशान क्यों हो रहे हैं? चला जाएगा न।
दादा : अरे मगर कब जाएगा ? चला जाएगा।
(और भी ज़्यादा ग़ुस्साते और ख़ीझते) ।
पोता: इम्पोर्टेड बीमारी है दादू। जानते ही हो। वीसा
ख़त्म होते ही चला जाएगा।(इत्मीनान से
मुस्कुराते हुए )...और आपके ज़माने में वो
एक गाना बड़ा मशहूर हुआ था न ?
दादा: (अनमने, उदासीन भाव से) कौन-सा गाना ?
पोता : जाएगा -आ-आ जाएगा -आ-आ, जाएगा
जाने वाला,जाएगा-आ-आ
दादा : अरे वह आयेगा आयेगा था। जायेगा जायेगा
नहीं...(तनिक सहज होते हुए गाना सही
किया तो पोते ने मुस्कराते हुए कहा-)
पोता: हां दादू। मगर अब आपका आयेगा वाला
सिक्वेंस बदल गया। यह तो जाएगा-जाएगा
वाला है।
(और काल्पनिक गिटार छेड़ता हुआ बड़ी अदा से तरन्नुम में गाने लगता है-जाएगा जायेगा जायेगा जाने वाला जायेगा।
दादा: बहुत शैतान हो गया है तू...रुक।( वह थप्पड़ दिखा कर उसकी ओर लपकने लगते हैं और
गाते-गाते ही पोता ड्राइंगरूम का पर्दा समेटने लगता है। सामने बाल्कनी दीखने लगता है। सचमुच में गिटार की कोई मीठी धुन सुनाई पड़ती है।)
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🦚उचितवक्ता डेस्क प्रस्तुति।🦚
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