दुःख की काया आलसी,सुस्त और भद्दी होती है। सुख का तन तन्वंगी, फुर्तीला और सुन्दर होता है। दुःख जहाँ आएगा वहां से उठने का नाम ही नहीं लेगा। सुख कभी आकर बैठेगा भी तो वहाँ से चल देने की जल्दी में रहेगा।
गंगेश गुंजन
[उचितवक्ता डेस्क]
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