.अंदेशा.
अब तो अंदेशा है कि खुद
साहित्य,सामाजिक सरोकार में
सतत विपक्ष का अपना पद और
अपनी पहचान गंवा न दे!
🌅
(उचितवक्ता डेस्क)
गंगेश गुंजन
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