Monday, January 29, 2018

मंज़िल के लिए

राह पर चलते-चलते-चलते ही  जाना
य'  ज़रूरी नहीं  ऐसे मंजिल भी पाना

एक थैला हो क़लम क़ाग़ज़ पानी बोतल
भुने चने भी तनिक साथ हों मंजिल के लिए।
*
-गंगेश गुंजन
३० जनवरी,२०१८ ई।

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