राह पर चलते-चलते-चलते ही जाना य' ज़रूरी नहीं ऐसे मंजिल भी पाना
एक थैला हो क़लम क़ाग़ज़ पानी बोतल भुने चने भी तनिक साथ हों मंजिल के लिए। * -गंगेश गुंजन ३० जनवरी,२०१८ ई।
No comments:
Post a Comment