Thursday, January 11, 2018

जनता कें कतबा चाही

जनता कें कतबा चाही
*
नेता  कें  रुतबा  चाही
जनता कें कतबा चाही

नेता कें धन-धान्य समेत
सब चुनाव जितबा चाही

जनता कें निश्चिन्त समय
नीक  बाट  जीवा  चाही

जनताकें चाही जनताक
मूर्ख  समर्पण टा   चाही

गन-गन करै' रहय संसद
सत्ता  कें   ततबा   चाही

जनता कें परिवर्तन केर
निराधार   आशा  चाही

उद्धतते शक्तिक थिक केन्द्र
तकरहि  स्वधीनता  चाही

सर्व तन्त्र स्वतन्त्र अर्थक
सैह  व्यवस्था  टा  चाही

ई समाज मे लोकक संग
लक्ष्मीपति-निजता चाही

सब  संकट  गंडा गाही
सब एहिना रहबा चाही

नेता केर उत्पादन क़ायम
बिकाय देश,बेचबा चाही
*
रचना: ६.१.२०११,गंगेश गुंजन।

No comments:

Post a Comment