जनता कें कतबा चाही
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नेता कें रुतबा चाही
जनता कें कतबा चाही
नेता कें धन-धान्य समेत
सब चुनाव जितबा चाही
जनता कें निश्चिन्त समय
नीक बाट जीवा चाही
जनताकें चाही जनताक
मूर्ख समर्पण टा चाही
गन-गन करै' रहय संसद
सत्ता कें ततबा चाही
जनता कें परिवर्तन केर
निराधार आशा चाही
उद्धतते शक्तिक थिक केन्द्र
तकरहि स्वधीनता चाही
सर्व तन्त्र स्वतन्त्र अर्थक
सैह व्यवस्था टा चाही
ई समाज मे लोकक संग
लक्ष्मीपति-निजता चाही
सब संकट गंडा गाही
सब एहिना रहबा चाही
नेता केर उत्पादन क़ायम
बिकाय देश,बेचबा चाही
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रचना: ६.१.२०११,गंगेश गुंजन।
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