Tuesday, January 16, 2018

अंधकार और प्रकाश : पहली कथा ।

अंधकार और प्रकाश
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अंधकार और प्रकाश में बहुत दोस्ती थी। दोनों दो शरीर एक प्राण थे।हरदम  एक साथ रहना चाहते।अलग नहीं होना चाहते। लेकिन प्रकृति का विधान है। दोनों को रोज़ अलग-अलग होना ही पड़ता। इस कारण दोनों बड़े दुखी हो गये। जुदा होकर दोनोें को,अपना-अपना दिन और रात  होना ही पड़ता था। सो दोनों विचारने लगे कि जुदाई से बचने की क्या तरकीब हो? दोनों अपना-अपना धर्म तो छोड़ नहीं सकते थे क्योंकि सृष्टि ने दिया था और धरती,प्राणि मात्र,समाज के लिए  दोनों की दो अलग-अलग भूमिका तय कर रखी थी। इसलिए निजी सुख के लिए वे अपना कर्तव्य तो नहीं छोड़ सकते न। ऐसा करना तो अधर्म और पाप होगा। सो  उधेड़बुन में पड़ गये। विचार करने लगे।इस तरह सोचते-सोचते जैसे ही कोई रास्ता दिखायी देने लगे कि तब तक किसी एक की बारी खत्म हो जाती ।और उसकी ड्यूटी शुरू हो जाती।उसी तरह सोचते-सोचते राह मिलने लगे है तो दूसरेनं की ड्यूटी शुरु हो जाए। इस प्रकार उन दोनों की निराशा और दुख का कोई ओर अंत न था।
   समय तो रुकता नहीं। बीतता गया। कि इसी उधेड़बुन और चिंता में एक समय, चिंता से उदस दिन के मन में अकस्मात एक रास्ता कौंध गया।दिन का चेहरा खिल उठा।वह मुस्कुरा पड़ा। फिर दोन कारण दोनों एक साथ ही मुस्कुरा पडे़। डूबता हुआ दिन ख़ुश होता बोल उठा-
-'मिल गया। रास्ता मिल गया।’ और मुस्कुराते हुए डूबने लगा।जबतक रात यह पूछती कि क्या रास्ता मिला’ तब तक दिन उससे जोर से लिपट गया और बोला-
‘आओ मैं तुम्हें पहन लेता हूं।और उसने रात को अपने कपड़े की तरह पहन लिया। और बोला-’कल जब तुम जाने लगना तो इसी तरह मुझे पहन कर चली जाना। इस प्रकार क्यों ना हम अपनी ड्यूटी बदलते वक्त एक दूसरे को पहन लिया करें तो हमारे अलग होने का सवाल ही नहीं होगा। इस तरह एक दूसरे का साथ भी नहीं छूटेगा और कर्तव्य‌ भी नहीं रुकेगा। दिन और रात का  हम अपना काम भी करते रहेंगे। और तब हम दोनों कभी अलग भी नहीं होंगे।
     और कहते हैं कि उसी के बाद,दिन जाने लगता है तो रात को पहन कर चला जाता है।और रात जाने लगती है तो जाते समय दिन को पहन लेती है।
    दिन और रात का यह क़िस्सा जाने कब से चला आ रहा है ! अंधेरे और उजाले की यह प्रेम कहानी जाने कब तक आगे भी चलती रहेगी ! ‌
(क्रमश:)
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-गंगेश गुंजन।३.४.’१७ ई  ।

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