Saturday, May 31, 2025

जेल ज़िन्दगी !

                    | 📘|
     जेल से बाहर भी जेल रही
     सज़ा ही थी ज़िन्दगी ऐसी।
                गंगेश गुंजन 
             #उचितवक्ताडे.

Friday, May 30, 2025

दिलचस्प हैं ये ख़ान सर

📕।      दिलचस्प हैं ख़ान सर,
. बोले कि ‘प्रेम शब्द ही जब अधूरा है तो ‘प्रेम’ पूरा कैसे हो सकता है। प्रेम भी अधूरा है।'
‘सऽर,सृष्टि ने मुझे जो बनाकर भेजा है। उसे ही पूरा बनाने के लिए तो। प्रेम को मनुष्य ज़रूर संपूर्ण बनायेगा सर।’
    किसी एकलव्य छात्र ने ख़ान सर को छूटते ही फेसबुक पर कहा। 

                           😄                                  गंगेश गुंजन  #उचितवक्ताडेस्क।

नदी होना

प्रदूषित होकर बहने से अच्छा कि नदी सूख जाए।
🍂
 गंगेश गुंजन #उवडे.

Thursday, May 29, 2025

महाकाल है !

                    महाकाल है ! 
फेसबुक पर जो भी लिख दें 'सच' ही बुझाता है जबकि कोई 'सच' संदेह से परे भी नहीं बन पाता है ! 
                     🌜🔥🌛 
                   गंगेश गुंजन 
             #उचितवक्ताडेस्क।

Tuesday, May 27, 2025

चैट जीटीपी महाशय (Chat gpt.)

        यह 'चैट जीपीटी' महाशय
                  -Chat gpt.-
                   युधिष्ठिर हैं ?  
                         📓  
                    गंगेश गुंजन 
                  #उचितवक्ताडे.

Monday, May 26, 2025

चि.शर्दू शरदिन्दु

.   चि० शर्दूक स्वास्थ्य ल' क' समस्त मैथिली समाज अपन आशीष आ स्नेह संग बहुत चिन्ता मे अछि।अवश्य सब टा कुशल मंगल रहतैक। सभकें भरोस छैक।
    किन्तु निवेदन जे भावुकताक कोनो तेहन पोस्ट लिखै सँ एखन परहेज करै जाइ जे पढ़ि ककरो कोंढ़ धक द' रहि जाइ...। कृपया।
    पोस्ट पढ़ि क' अनुभव भेलय तखन ई लीखि रहल छी। 
   हमरा नजरि मे तंँ शर्दू अओर नवतूर विद्यार्थी मिथिला मिहिरक छथि ! बड़ मोह अछि।
                       गंगेश गुंजन                                       #उचितवक्ताडेस्क।
                          २७.५.'२५.

Sunday, May 25, 2025

सत्य खेत आ जाएगा क्या

'सत्य' इस बार
 खेत आ जाएगा क्या,
 एनडीए और इंडिया गठबंधन दलों के बीच इस सत्य युद्ध में ?
                          📓। 
                         गंगेश गुंजन 
              #उचितवक्ताडेस्क.

Saturday, May 24, 2025

कबड्डी खिलाड़ी एंकर !

एक समाचार लाइव चैनेल पर देखते हुए तो लगता है जैसे एंकर साहेब अकेले कबड्डी खेल रहे हैं ...        😜 
                    गंगेश गुंजन 
                 #उचितवक्ताडे.

Thursday, May 22, 2025

शे'र नुमा :

   मक़बरे से लौटकर फिर जी उदास है,
 फ़साना फिर लिख‌ रहे थे जवां दो दिल !
                       🏡 
                   गंगेश गुंजन 
                 #उचितवक्ताडे.

Friday, May 16, 2025

कविता का आमजन

|📕|                 कविता का आम जन !
                                 ❄️
मुश्किल है कि आमजन के शोषण, प्रवंचना और दुखों की बात कविता जिस नफ़ासत के साथ जितनी महीनी से कहती है उसी महीनीसे वह संबोधित  जनसाधारणभी अपनी यह करुणा और तकलीफ समझ पाता है क्या?
   मुझे हरदम यही समस्या रही है कि हम जिनकी कहानी कहते-लिखते हैं उन्हें तो बहुतों को पढ़ना ही नहीं आता। तब साहित्य जो केंद्रीय रूप से उनके ही पक्ष में होता आया कहा जाता है उनकी समझ कैसे बढ़ेगी? और जब यह समझ नहीं बढ़ेगी तो वे इनसे मुक्त होने की प्रतिरोधी चेतना और दृष्टि कैसे विकसित करेंगे ?
    ऐसे में प्रकारान्तर से यह लगता है कि जनसाधारण और वंचितों के शोषण की यह कविता-कहानी भी सीमित प्रबुद्धों के विमर्श की दिनचर्या भर होकर रह जाती है।प्राकृतिक आपदाओं के बहु प्रसिद्ध अनुभव-उदाहरण के रूप में कहें तो इस शिल्प,प्रकृति की अत्यंत महीन और सूक्ष्म कलाकारी से लिखी गईं अधिकांश रचनाएंँ ठीक वैसी ही हैं जैसे बाढ़-भूकंप आदि आपदा काल में  सरकारें,समाजसेवी संस्थाओं के द्वारा विपदा में घिरे लोगों को भेजी गई जीवन-रक्षक राहत सामग्रियांँ जो पीड़ितों,आपदा ग्रस्त लोगों तक नहीं पहुँचतीं,जा पहुंँचती हैं घोटालेबाजों के बड़े-बड़े गोदामों में।जहांँ से होती हुई फिर ब्लैक के बाजारों में।      ।📓। 
                     गंगेश गुंजन 
                   #उचितवक्ताडे.
                      १३.४.’२५.

Wednesday, May 14, 2025

भाष - कुभाष

🌜✨🌛                भाष - कुभाष
                                      ▪️
कभी-कभी कुछ प्रबुद्ध लोगों की भाषा पढ़ते हुए भी (मेरे मस्तिष्क में ) यह संदेह होता है कि किसी अनपढ़ और अशिक्षित की भाषा अधिक असभ्य है या इन महामहोपाध्याय की ?
   यह ठीक है कि वैचारिक उत्तेजना में कभी- कभी विद्वानों की भाषा भी उद्दंड-सी लग सकती है किंतु ज्ञान और सिद्धांत अथवा वैचारिकता का उदात्त संदर्भ होने के चलते उनका उद्देश्य और प्रयोजन विशेष और व्यापक होता है। अतः पाठक अपने विवेक से उन्हें किसी शिक्षक की डांट मान कर सहन कर लेते हैं। हालांकि शिक्षक की भाषा में भी अपने ज्ञान का आत्मविश्वास भर ही होना चाहिए, शिक्षक होने के हक़ से अपने ज्ञान का घमंड तो नहीं छलकना चाहिए। 
     भाषा समय समय पर इन दोनों का भेद
खोल ही देती है। बहुत महान् तो होती है भाषा लेकिन आवश्यक होने पर चुगलख़ोरी भी करती  है । 
   लेकिन बहुत तो फ़क़त अपनी निजी भड़ाँस निकालने के लिए और वह भी तुच्छ राजनीतिक दल,विचारधारा या अपनी तथाकथित साहित्यिक आक़ाओं की पक्षधरता और वफ़ादारी साबित करने में भाषा-व्यवहार की न्यूनतम शिष्टता भी नहीं निभाते और असभ्य भाषा तेवर में लिखते रहते हैं। विशाल, गहरे और विस्तृत पहुँचे हुए इस सामाजिक संचार माध्यम पर यह विडंबना तो और भी असहनीय है।
   मुझे क्या मालूम नहीं है कि मेरे यह कहने से भी क्या होगा? लेकिन अपनी आपत्ति नहीं कहूंँ यह भी तो नहीं होगा मुझसे।
                         •।                                                             गंगेश गुंजन 
                             #उचितवक्ताडे.

Tuesday, May 6, 2025

अभिशापित जो हम

हम अक्सर वह दुःख सहने को अभिशापित रहते हैं 
जिसमें दूर-दूर तक अपना कोई दोष नहीं रहता है।
▪️ 
गंगेश गुंजन 
#उवडे.

साहित्य और राजनीति का कुंडली-मिलान

📕
साहित्य और राजनीति की कुंडली आजतक नहीं मिली।तो,अब मिलने लगेगी क्या ?
।।
                                गंगेश गुंजन #उवडे