Wednesday, December 4, 2019

प्रेम और गंगाजल !

गंगाजल भी फूटे हुए पात्र में रखा जाय तो कभी रिस जाता है। प्रेम तरल होकर भी अपनी चाहत के पात्र में टिका ही रहता है।         
          गंगेश गुंजन।(उचितवक्ता डेस्क)

No comments:

Post a Comment