इस लोकतंत्र में विपक्ष एक नियति ।
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विपक्ष की नियति ही है विपक्ष । जिन्हें अपने विपक्ष होने का अभिमान है उनकी आयु सत्ता परिवर्तन तक की है। इसलिए अन्य कई झोलदार लोकतान्त्रिक विशेषणों की तरह विपक्ष भी पर्याय: जुमला भर बच गया लगता है। मुक्तिबोध का ‘पार्टनर तुम्हारी पालिटिक्स क्या है’ का यह समय नहीं बचा है। लोकतंत्र में आप ज्योंही किसी राजनीति दल के पक्ष में किसी सत्तासीन दल का विपक्ष कर रहे हैं तो मौजूदा सत्ता शासन का अंत और आपके पक्ष का सत्ता ग्रहण के साथ ही आपका विपक्ष भी पक्ष में तिरोहित भर होता है जैसे महा नगर का कोई नाला किसी महानद में।
अभी तक एक मात्र कविता विपक्ष है और विचार। कवि भी समष्टिक नहीं।
विचार कभी,आडम्बर में किसी एक विचारधारा का दूसरी विचारधारा में विलयन का अंजाम देने तक ले जाने भर के लिए पालकी नहीं ढोता है । विचार राजनीतिक दलों की पालकी का कहार नहीं बन सकता।
कविता तो विपक्ष का पर्याय ही है।
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गंगेश गुंजन।२८.४.’१९.
Monday, April 29, 2019
इस लोकतंत्र में विपक्ष ।
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