Thursday, April 27, 2023

निरीह है दु:ख !

                   निरीह है दु:ख !

मामूली से मामूली सुख बड़े से बड़े दु:ख को पकने ही नहीं देता उसको सयाना होने ही नहीं देता है। दु:ख को अपना दास बना कर रखता है। तिस पर भी हम हैं कि बेचारे दु:ख को ही कोसते रहते हैं। 

                     गंगेश गुंजन                                      #उचितवक्ताडेस्क।

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