Tuesday, April 18, 2023

ग़ज़लनुमा : उसको गर पर्वाह नहीं है तू भी...

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  उसको गर पर्वाह नहीं है तू भी

 कुछ पर्वाह न कर

  जाने दे रिश्ता सब ऐसा भूले से

 भी निबाह न कर।


  दौलत-दौलत खेल चला है जीवन

 के बाज़ारों में

  शामिल होगा और जीतेगा तू

 फ़िज़ूल की चाह न कर।


  करने दे करने वालों को क़त्लों पर

 भी जयकारे

 इन्सानी निस्बत से ऐ दिल मत हो

 शामिल वाह न कर।


  छुपा-सजा कर ख़ाब बचा रक्खे हैं

 काले सायों से

  थोड़ी सी हिम्मत कर और, बचा के

  रख,तबाह न कर।


  क्यों लगता हूँ कभी-कभी मैं भी

 झूठे अख़बारों में 

  अबभी सूखे पेड़ नहीं हैं,हमको तो 

 अफ़वाह न कर।


  गाना रोना एक बराबर लगता है

 इस मंज़र में 

  हो पड़ोस पर शुबहा,लेकिन सब

 पर शक्की निगाह न कर।

                         .

                  गंगेश गुंजन                                     #उचितवक्ताडेस्क।


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