Tuesday, February 5, 2019

इतिहास सत्ता का ही लिखा जाता है

इतिहास सत्ता का ही लिखा जाता है
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इतिहास सत्ता का ही लिखा जाता है प्रत्यक्ष सत्ता हो या परोक्ष। सत्ता साहित्य और संस्कृति की भी होती है।
   इतिहास कामी लोग अपने उपलब्ध अवसरों में  दूरदर्शिता के साथ ऐसी संरचना भी करते चलते हैं जो उन्हें किताबों में दर्ज करती रहती है । सत्ता कुछ तो मिलती है प्रतिभा से भी किंतु साधारणतया अन्य सामाजिक कौशल से स्थापित और बढ़ाई ही जाती है और सत्ता प्राप्त प्रतिभाओं के यत्न से उसमें टिकाउपन लाया जाता है और इसके लिए बड़े कौशलसे सामयिक  आधुनिक उपकरण-अवयवों का कलात्मक प्रयोग किया जाता है।
     पहले राजा रजवाड़े हुआ करते थे तो उनके आश्रय में आज इस लोकतंत्र में। मौजूदा लोकतंत्र अधिकतर सत्तासीन राजनीतिक दल और सक्रिय विपक्ष की हिस्सेदार राजनीतिक दल और इनके झंडा बरदारों के स्नेह संरक्षण से इतिहास में जगह पाने लायक सत्ता तैयार होती है ।अर्थात किसी इतिहास-कामी द्वारा
कोई भी सत्ता अक्सर किसी बृहत्तर सत्ता को दिए हुए यानी उसमें निवेश किए गये का ही प्रतिबद्ध,उपकार या संपत्ति होती है। तो संपत्ति के क्षीण होने की प्रक्रिया में ही इतिहास की ऐसी सत्ताएं भी कालांतर में अपनी अपनी आभा खो देती हैं। धूमिल हो जाती हैं और और उद्धृत या पढ़ने योग्य नहीं बच जातीं। मगर विधा रूप में तब भी इतिहास परिवर्तित परिवर्धित और निर्मित होता रहता है।
   अपने समय की जाने कितनी रचनात्मक प्रतिभाओं की इतिहास ने निष्ठुर अवहेलना की, क्योंकि वे प्रतिभाएं किन्हीं कारणों से सत्ता का आश्रय लेने नहीं गईं।अतः वे इतिहास के पृष्ठों में उपस्थित नहीं हो पाईं। फिर भी इसी कारण से वे प्रतिभाएं हुई ही नहीं या बच नहीं पाईं ऐसा सोचना संकुचित,तात्कालिक और अनर्गल मानना है।
    प्रतिभा किसी न किसी रूप में चाहे उसे कोई वृक्ष, हवा,पानी मिले ना मिले वह फिर भी जीवन,अमृत और पराग की तरह परिवेश में विद्यमान रहती है।
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-गंगेश गुंजन। ४.२.’१९.

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