Friday, December 14, 2018

हम इतने करुणाहीन क्यों हो रहे हैं

हम करुणाहीन क्यों होते जाते हैं।
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करुणा मनुष्यता का दिव्य गुण है। स्वयं को असमर्थ और दयनीय होने से बचा कर,इस अनमोल मानवीय धन-करुणा का अपने लिए ख़र्च होने से बचा कर हम समाज का मूल्यवान सहयोग कर सकते हैं।पड़ोस और समाज को दयनीय पर ही दया आती है। स्वस्थ और सक्रिय मनुष्य पर समाज की सदा संतोष और सराहना की दृष्टि पड़ती है। अपने-अपने यत्न और रखरखाव से हम स्वस्थ रहें तो समाज की करुणा बचेगी।
    वृद्ध जन वृद्ध तो दिखें लेकिन असहाय और बीमार नहीं।ऐसी चिन्ता रखने से सामाजिक करुणा का अपव्यय बच सकता है।
मुझे लगता है अन्य भंडारों की तरह ही मनुष्य में करुणा का भंडार भी सीमित है अतः करुणा का भी प्रयोग और ख़र्च भी बहुत विवेक के साथ ही होना चाहिए अन्यथा यह पृथ्वी धीरे-धीरे अपने इस दिव्य मानवीय गुण करुणा से रिक्त हो जाएगी और मनुष्यता निष्करुण।
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-गंगेश गुंजन। १५.१२.’१८.

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