Thursday, October 18, 2018

सबकुछ बीच में है !

सब कुछ बीच में है।
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सब कुछ बीच में है। एक काम अभी पूरा हुआ है ।आगे कोई अधूरा खड़ा है।आज का दिन आज समाप्त हुआ है ।अगले दिन फिर शुरू होने वाला है ।कोई पुस्तक एक पृष्ठ पढ़ी गई है ।आगे भी पढ़ी जाने वाली है ।जहां अंत है वहां दूसरी पुस्तक प्रकाशित होकर समाज में आने वाली है। यही क्रम है जीवन का। नित्य निरंतर। आज मैंने कहा- हम बीच में हैं ।कल थे । ‘आज’ आने वाले कल के बीच में हैं। सब दिन सब काम आधा है जिसे तमाम सृष्टि पूरा करने के चक्र में निरंतर चलती रहती है। जाने कब से सृष्टि स्वयं भी बीच में ही है ।जब भी शुरू हुई अतीत में शुरू हुई है ।और अगर समाप्त होगी तो वर्तमान में नहीं भविष्य में कभी। इस प्रकार वर्तमान विगत कल और आने वाले कल के बीच में संपूर्ण भी है और असंपूर्ण भी है । हर वर्तमान की अर्थात हर एक वर्तमान ही यथार्थ जो आपके विवेक और कर्म के अधीन है। और पूर्व पर है सर्जक या विनाशक है ।प्रकाश है । जीवन को सिर्फ आज और आज के ही दायरे में अपने विवेक अपनी बुद्धि अपनी आशा आकांक्षा के साथ भविष्य से जोड़ना चाहिए। वर्तमान को जहां तक संभव हो अपने आचरण से,अपने कर्म से,प्रयास से,सोच और आदर्श से सचमुच का आदर्श बनाना चाहिए। आदर्श में त्याग की भूमिका मेरे विचार से सर्वोपरि है। अपेक्षा हीनता की प्रेरणा बड़ी है ।संबंध कोई हो वह पत्नी, पुत्र,पिता, माता ! सबसे संलिप्त रहकर भी सबसे निरपेक्ष रहना। एक प्रकार सबमे होते हुए भी सबसे निर्लिप्त रहना एक प्रकार से सबसे बड़ा विवेक है। मन प्राण में अपने साथ अपने परिवार के साथ अपना गांव भी रहे,अपना सकल समाज भी रहे । आदर्श स्थिति है यही ।परंतु यह सब कुछ आप अतीत को सुधारने में नहीं लगा सकते। भविष्य को बनाने के लिए नहीं कर सकते। सिर्फ और सिर्फ वर्तमान को सुंदर से सुंदरतम बनाने की प्रक्रिया चलाए रख सकते हैं।यही आपकी विवेक का तकाजा है यही श्रेष्ठ मनुष्य का लक्ष्य है।
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गांव।-gangesh Gunjan विजयादशमी। १९.१०.’१८

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