Saturday, October 13, 2018

स्नातक नहीं हुए हैं अभी शब्द

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शब्द अभी उत्तीर्ण नहीं हैं। फिर भी हमारा बड़ा से बड़ा काम चल रहा है। कहां तक सोच गए हमारे पुरे ! कहां तक कर गये और इन्हीं इन्हीं अनुत्तीर्ण शब्दों ने बीच इतना कुछ करने का प्रारूप नहीं बना दिया, ज्ञान-विज्ञान का कितना पुख़्ता आधार  भी तैयार नहीं कर दिया? हम सुविधा से और सुविधा जनक स्थिति में आते चले गए हैं।

सोचिए कि शब्द जिस दिन उत्तीर्ण हो जाएंगे अर्थात जिस दिन अपना संदर्भ,योजना,आशा एकनिष्ठ कर लेंगे,शब्द उसी दिन उत्तीर्ण हो जाएंगे। शब्द तब अपनी वास्तविक परिणति भाषा पर पहुंचेंगे और ऐसी कहीं एक जगह रह लेंगे ।अभी जो संदर्भों के साथ शब्दों में आश्रित होते हुए भटक रहे हैं अस्थिर रहते हैं और भटक रहे हैं, तब ये निश्चिंत घर में रहने लगेंगे और तब जैसे सही सही नाम पता के साथ डाक से चिट्ठी आती थी तार आ जाता था,आज लेखक विचारक का आशय, अभिप्राय रही संदेश भी उसी तरह भेजें जाएंगे और संबोधित पते तक ठीक ठीक एक ही व्याख्या और एक ही व्यक्तित्व के साथ पहुंचा करेंगे ।अभी तो यही लाचारी है कि न्याय में भी शब्द स्नातक नहीं है नहीं हुए हैं। शब्द इसीलिए तो एक न्यायालय की देखना है जिला न्यायालय की व्यवस्था ऊपर का न्यायालय खारिज कर देता है और यहां तक न्यायालय के न्यायाधीशों में भी परस्पर विरोध और विरोधाभास होता है इससे कई बार न्याय तक उत्तीर्ण नहीं हो पाता है ।अंततः शब्द को उत्तीर्ण होना चाहता है,जो होना है । आज भी उत्तीर्ण नहीं है। होना है।

इस घड़ी मन में यह भी उपजा है कि शब्द को ब्रह्म इसीलिए तो नहीं कहा गया है ? शब्द अभी आज जिस स्थिति में है स्नातक नहीं हो पाया है। जिस दिन शब्द अपनी वास्तविक परिणति-'बह्म’ मैं पहुंचेगा उस दिन पूरे विश्व मानव की भाषा एक होगी। मानव का लक्ष्य भी एकात्म और वैश्विक हो जाएगा!
वसुधैव कुटुंबकम् !

गंगेश गुंजन 14 अक्टूबर 2018.

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