Thursday, November 23, 2017

छाउर-(२)

छाउर.(दू)
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हाथ मे मैल आ कचकच करत छाउर।
बसातक उधियायल आंखि मे पड़ल तं
सहजहिं कुटकुटायत।
मुदा माछ बनबय में सबसं बेसी काजक रहय।
छाउरे लगा क’ घीचल जाइत छल तहिया
कटाह लोकक जीह।
कहबी मे सेहो कहां बांचलए।
राति-बिराति ठाम-कुठाम क’ देने बिलाड़िक नेड़ी कें
तत्काल झांपि देल जाइत छल,छाउरे सं
मूत-गोबर सं गिल रहि गेल गाय-बड़दक थैर पर छीटल जाय छल छाउर।जल्दी रुक्ख करै लेल माटि।
मां कहलक तं बाड़ी में कोबी-भांटाक गाछ पर तं कतेको बेर हम स्वयं छिटने छी-चूल्हि आ घूरक छाउर।
दतमनिक अभाव आ मार्निंग स्कूलक हड़बड़ी मे
कए बेर छाउरे दातमनि करैत रही हमरा लोकनि
गामक इसकुलिया विद्यार्थी सब।जाइ वाटसन स्कूल ।
छाउरो आब लुप्त होइत वन्य प्राणीक प्रजाति जकां भ’ रहलय। बेरा-बेरी विदा भ’ चलि जा रहल गाम मे बूढ़-पुरान लोक जकां।
मिझायल घूरक छाउरे पर घोकरिया क’ पड़ि-सूति
जड़काला राति बितबैत रहय गामक अनेरुआ कुकूर!
     इतिहास भ’ जायत।

-गंगेश गुंजन । २४.११.२०१७ ई.

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