Thursday, September 22, 2016

जनता बुड़ि-बकलेल !

ढेलमासुक  हम ढेप  भेल  छी।
खलिया गाड़िक खेप भेल छी।।

यार-दोस्त सम्बन्धिक  परिकठ।
माटि-मलहमक लेप भेल छी।।

एते  पैघ   आबादीक   गामक ।
गनल-गुथल अभिशेष भेल छी।।

परिवेशक  वन  आ झाँखुर   सँ ।
अपनहि मे हम कोनो  जेल  छी।।

न्यायालय केर कोनो  दोख  की।
बिनु अपराधो बन्द    भेल  छी।।

टीशन  बीचक  घन  अन्हार  मे।
इंजिन  भङ्गठल  रेल  भेल  छी।।

लोकतंत्र  केर   मंदिर - मस्जिद।
एक  बेर    संसदो   गेल    छी।।

संविधान    बनबैत   सभा    घर। 
तकरहि हम बूड़ि-बकलेल  छी।।

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-गंगेश गुंजन। 10.03.’16.

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