Saturday, September 24, 2016

ग़म अगर  है  तो  बँटवारा   हो 

ग़म अगर  है  तो  बँटवारा   हो  / 
कुछ हो मेरा  ज़रा  तुम्हारा हो  //

आज भी जीना क्यूँकर मुश्किल / 
ज़रा जो  दोस्त  का  सहारा  हो //

दूर  तक चार  सिम्त  पानी   है  /
एक  उम्मीद  है   किनारा   हो  //

सहे नखरे   बड़े   उठाए   नाज़  /
अब अंदेशा  है कि  गवारा  हो  //

आह  माज़ी  पुकारता  है   मुझे/
वो  ज़िन्दगी  वही   दुबारा   हो //

हरेक  लम्हा   बदरूप   बेजान  /
रही हसरत खुशनुमा प्यारा हो //

ख़ुद तो माँ के  हुए  ना बाबा के /
मेरा  बच्चा   मगर  हमारा   हो  //
*
१२ मई,२०१५ .
-गंगेश  गुंजन .

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