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लेखक के पहिने
हयब सिद्ध कर’ पड़ैत छैक।
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लेखक केँ पहिने लेखक हयब सिद्ध कर’ पड़ैत छैक।योग्य-अयोग्य,श्रेष्ठ कि साधारण से तंँ ओकर समाज,विद्यमान आ भविष्यक समाज,ओइ भाषा- संस्कृतिक समाज निर्णय करैत छैक।अकारण नहिं जे भरि जीवन लेखक अपन साहित्य मे समग्र मानवीय करुणा आनि सकय,लोक समाज भरि ओकर असरिक उदात्त संचार क’ सकय तकरे साधैत रहि जाइत छथि।
एखन ई डिजिटल युग मे पर्यंत साहित्य ताही अर्थ में साधना बनल रहि गेलय।
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गंगेश गुंजन
#उचितवक्ताडे.
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