Sunday, October 27, 2024

कविता की बुद्धिजीविता...

           कविता की बुद्धिजीविता 
                        ❄️
  कविता के कुछ दु:ख,कवि के दिमाग़ी होते हैं,काल्पनिक और लगभग कृत्रिम। 
लेकिन इसी बात का पाठक को आभास भी नहीं होता।असल कविता में इस काल्पनिकता को स्वाभाविक,विश्वसनीय और सहज साधारण बना सकने के अनुभूतिप्रवण कौशल में ही कवि,कवि होता है।
    बरजोरी की कविता को पढ़ने-सुनने पर सामान्य पाठक को सीधे महसूस हो जाता है।सो चाहे विचारों से फड़कती हुई नयी कविता की शक्ल में हो अथवा  गीत,ग़जल के साँच-ढांँचे में। इसके लिए बुद्धजीवी होना कोई ज़रूरी नहीं।
                       🌜🌛
                    गंगेश गुंजन 
                  #उचितवक्ताडे.

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