अब दूर से दिख जाते हैं अफसोस के इलाक़े ज़ाहिर है उसी पग पर रुख़ मोड़ लेता हूं।
तज़ुर्बे तो बहुत रिश्तों के सफ़र में हुए लेकिन जो सो गये हैं उन्हें वहीं छोड़ देता हूं।
गंगेश गुंजन
#उचितवक्ताडेस्क।
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