📕 . कुछ स्वतंत्र दो पँतिया
✨
१.
अपनी ही सब मुश्किल को मैंने कवच बना डाला
सभी तवज्जो और तवक़्को सौंप दिए अब तरकश को।
२.
पहली बार मिला था वह तो हमनवा ही था
मोहल्लेदार तो अब इधर आ कर हो गया है।
३.
हर बार उसी याद ने यह याद दिलाया
सब भूल भी जाने में हर सुकून नहीं है।
४.
सूर्य-सत्य से भी बढ़कर है सत्य कोई
पृथ्वी पर
सूर्योदय,दुपहर,सूर्यास्त में वह भी ढलता रहता है
५.
इससे सुनकर उससे सुनकर लोगों को कहते किस्सा
इतने दामी लोग-वक़्त का मिरा सफ़र भी ख़ूब रहा।
६.
मर नहीं जाते हम तो क्या करते
वफ़ा का वास्ता दे दिया उसने।
७.
मेरी भी छूटी है मंज़िल हम भी पथ से भटके हैं
टूट-टूट कर बिखरे भी लेकिन जागे थे,संभल गये
🌓
गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडे.

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