Monday, April 29, 2024

ग़ज़ल नुमा : लोकतंत्र का महासमर है पहली बार..

                       🌻
    लोकतंत्रका महासमर है अबकी  बार
    कौन किधर है पता कहाँ है अबकी बार।

    पहले से ही 'जाति न पूछो साधू'-संकट
    ज़्यादा और धुआँ छाया है अबकी बार ।
   
    छुपे एजेंडे हैं तैयार प्रलोभन के
  दीन हीन दिग्भ्रमित बुद्धि,जन अबकी बार।

    विजय पताका सजे-धजे सब दोनों ओर
    दोनों तरफ़ हतप्रभ जनता अबकी बार।

    वोटतंत्र की लोकतंत्र की अबके जाँच
   धुंध दिमाग़ों वाली जनता अबकी बार ।

    चारो  तरफ  घुमड़ता मंज़र सोच में है
    बिखरी अपनीही पहचानें अबकी बार।

    रोटी-शिक्षा-स्वास्थ्य सड़क से भी ऊपर
    सब के आगे जात धरम है अबकी बार।

    सोच,सेहत से जाग्रत-मन लोगों के भी
    क्यूंँ विचार हैं कुंद वोट में अबकी बार।

    'पंचन की सब बात मेरे सिर-आँखिन पर,
     खूंँटा लेकिन इहैं गड़ी' है अबकी बार।

    चैनेल  हकलाये - बौराये - से अखबार
    दोहरे - तिहरे बोलों वाले  अबकी बार।
                          🌻
                     गंगेश गुंजन                                     #उचितवक्ताडेस्क।

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