आलोचना और आलोचक !
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ज्ञान का साहसिक बुद्धि-प्रयोग ही आलोचना को सम्यक् श्रेष्ठ और प्रासंगिक बनाता है।
ज्ञान-साहसी रचनाशील दक्षता किसी आलोचक का मेरुदंड है। पूर्वग्रह मुक्त और निष्पक्ष होना यहाँ अपरिहार्य नैतिकता है।
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-गंगेश गुंजन 2 दिसंबर,२०१८.
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