Tuesday, October 18, 2016
मोहभंग के दौर में कहा हुआ,अपना यह नवगीत मिला-सुना।क्रान्ति सम्भव जी ने इसे एक नए अंदाज़ में प्रस्तुत कर, यू ट्यूब विधा में मुझे भेजा था। यह आपको भी भेजने की बड़ी इच्छा हो आई। हालाँकि इसी माध्यम से मेरे सभी स्नेहादरणियों तक स्वत: पहुँच जाएगा, अपना यह प्रच्छन्न 'अभिप्राय' भी मुझे प्रेम से क़बूल है। सस्नेह,
https://www.youtube.com/shared?ci=FVsLUQM0MzE
Wednesday, October 12, 2016
चाहने से भी हो जाता है
चाहने से क्या हो जाता है
कोई अपना ही हक़ पाता है
जो कोई दूसरों को ठगता है
कभी तो ख़ुद भी ठगा जाता है
मेरे घर आकर आए दिन वह
क्या न इल्ज़ाम लगा जाता है
मैं तो ख़ामोश सह जाता हूँ
वो मेरी ख़ामशी भुनाता है
जाने सच के करीब जा-जाकर
क्यूँ यह ख़ुद्दार लौट आता है
अब तो उसका लिखा हुआ गाना
भूल से भी यह मन न गाता है
उसने तो गीत लिखा था मेरा
भला गंगेश क्यूँ बुलाता है
*
-गंगेश गुंजन
Sunday, October 9, 2016
Subscribe to:
Posts (Atom)