चाहने से क्या हो जाता है
कोई अपना ही हक़ पाता है
जो कोई दूसरों को ठगता है
कभी तो ख़ुद भी ठगा जाता है
मेरे घर आकर आए दिन वह
क्या न इल्ज़ाम लगा जाता है
मैं तो ख़ामोश सह जाता हूँ
वो मेरी ख़ामशी भुनाता है
जाने सच के करीब जा-जाकर
क्यूँ यह ख़ुद्दार लौट आता है
अब तो उसका लिखा हुआ गाना
भूल से भी यह मन न गाता है
उसने तो गीत लिखा था मेरा
भला गंगेश क्यूँ बुलाता है
*
-गंगेश गुंजन
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